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मूँद लो आँखें / शमशेर बहादुर सिंह
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मूँद लो आँखें
शाम के मानिंद ।
ज़िन्दगी की चार तरफ़ें
मिट गई हैं ।
बंद कर दो साज़ के पर्दे ।
चाँद क्यों निकला, उभरकर...?
घरों में चूल्हे
पड़े हैं ठंडे ।
क्यों उठा यह शोर ?
किसलिए यह शोर ?
छोड़ दो संपूर्ण--प्रेम,
त्याग दो सब दया--सब घृणा ।
ख़त्म हमदर्दी ।
ख़त्म --
साथियों का साथ ।
रात आएगी
मूँदने सबको ।
(१९४५ में लिखित)