भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मूंज रा बट / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
किंकरयै री डाळां में
सूखती फळी
कलेवो, बकलड़ी रो,
गीली ही पैला
मूंगी छम्म,
अबै सूख‘र
पीळी केसर बणी ऐंठी है
हाथ रै हिलारै सूं
छण-छणाट कर‘र
पड़ जावै है ?
बळ नीं जावै है।