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मूइलाक बाद / नारायण झा
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जीबैत माय बापक मानहि नहि
पेट भरब नहि लागय पार
मरिते देखू, हुनका लेल
रसगुल्ले सँ भोजक विचार।
जे बाप भरि पेट अन्न ने खेलक
माय नहि पहिरलक भरि देह नुआ
आब देखू हुनका नाम पर
दान क' रहलाह थानक थान नुआ।
हुनका लेल नहि छल कोनो तेल
नहि छल सर्फ-साबून-इत्र
एखन हुनका मूइल शरीर पर
रगड़ि रहलैक इत्र गत्र -गत्र।
सुतै लेल छल टूटल पुरना घर
छल छाड़ल सड़लाहा डोरी सँ खाट
नहि भरोस जे हिनक प्राण सँ भेटत त्राण
तकैत छलाह हुनक मरैक बाट।
जखन ओ छलाह कुहरैत
हुलकि पुतोहु देखैत छलथिन
चिकरि बूढ़ छलथिन जखन बजबैत
हुनका दुतकारि दबारैत छलथिन।
प्राण रहैत, मुँह चमकबैत, ऐंठैत
सदिखन प्राणक पियासल रहथिन
हाकरोस स्वर मरिते देखू
अन्तर्मन खुशी, बाहर कलपैत-बिलखैत।