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मूठ अचूक / सांवर दइया
Kavita Kosh से
म्हैं तो आ ई सुणी
बावड़िया करै जोबन
दो पाछै
पण
थारै कनै तो
एक ई राग-
म्हारी कड़ दूखै
फाक्यां में लेवण खातर
म्हैं गूंथूं जाळ
पण तूं कद पजै
नट विद्या रो जाणकार
नाड़ हिला र
मारै मूठ अचूक-
धोळा आयग्या
बावळी बातां करो !
केशव !
बिन बाबा सुण्या ई
म्हैं मारां मन !