भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मूर्ख और वीनस / बाद्लेयर / मदन पाल सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

Le fou et la Vénus<ref>इस रचना के अनेक अर्थ लगाए जाते रहे हैं । सामान्यतः सौन्दर्य, कला, स्त्री, प्रेम के सम्मुख कलावन्त दयनीय, दुःख में डूबे या असहाय हो सकते हैं. साथ ही कवि का कार्य कविता के प्रकटन में ही नहीं, बल्कि इसके विपरीत विफलता को व्यक्त करने में भी सन्निहित है । एक बात यह भी है कि क्या मूर्ख कला का आस्वादन कर सकता हैं?</ref>

कितना ख़ूबसूरत दिन है ! विशाल उद्यान सूरज की चिलचिलाती किरणों के नीचे बेसुध हो रहा है, जैसे प्रेम की सत्ता के नीचे युवा आहें भरते हुए प्रलाप करते हैं । चीज़ों का सार्वभौमिक परमानन्द किसी भी शोर द्वारा व्यक्त नहीं हो रहा है । मानव त्यौहारों से बहुत अलग झील, जलप्रपात इत्यादि सब शान्त हैं । इस तरह यह एक मौन भरा आनन्दोत्सव है ।

ऐसा लगता है कि एक तेज रोशनी वस्तुओं को अधिक-से-अधिक चमकाने का कारण बनती है । उत्साहित फूल अपने रंगों की ऊर्जा लिए आकाश की आभा के साथ प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा से जलते हैं और गर्मी सुगंध को दृश्यमान बनाते हुए, उन्हें धुएँ की तरह तारों की ओर बढ़ा देती है ।

हालाँकि, इस सार्वभौमिक आनन्द में मैंने एक शोकग्रस्त प्राणी को देखा ।

इनमें से एक कृत्रिम पागल यानी विदूषक (उन स्वयंसेवी विदूषकों में से एक जिनपर मनोव्यथा व उदासी से घिरने पर राजाओं और दरबारियों को हँसाने का जिम्मा होता है ।) सींग और घण्टियों से सज्जित होकर एक चमकदार और हास्यास्पद पोशाक में बाहर निकला । फिर देवी के आसन के सामने खड़ा होकर अजर-अमर वीनस को आँसुओं से भरी आँखों से देखने लगा । इस तरह वह शोकग्रस्त प्राणी वृहत्काय वीनस के बुत के चरणों में पाया गया ।

और उसकी आँखें कह रही थीं : ‘‘मैं मनुष्यों में सबसे अन्तिम, तुच्छ और सबसे ज़्यादा एकान्तिक हूँ । मैं प्यार और मित्रता से वंचित हूँ और मैं जानवरों से भी ज़्यादा गिरा हुआ, पतित हूँ । हालाँकि, मैं भी अमित, अविनाशी सौन्दर्य को समझने और महसूस करने के लिए बना हूँ । आह देवी ! मेरी उदासी और मेरे पागलपन पर दया करो !’’

लेकिन कठोर वीनस अपनी संगमरमर की आँखों के साथ कहीं दूर देख रही है । और क्या देख रही है ? यह मुझे नहीं मालूम ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मदन पाल सिंह

शब्दार्थ
<references/>