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मूर्ति विसर्जन / बीना रानी गुप्ता

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मुम्बई के सागर तट पर
देखा मैंने दुर्गा माँ का मूर्ति विसर्जन
पर सागर में कहाँ सामर्थ्य
वह लौटा देता दुर्गा मां की
खंडित प्रतिमा
अधकटा सिर
टूटी चूड़ियाँ
बिखरे केश
फटी चुनरियाँ
हारों की टूटी लड़ियाँ
स्वास्तिक से सुसज्जित कलश के
खंड-खंड
फट रहे माँ के वस्त्र
एक ओर लग रहे
माँ के जयकारे
तो कहीं पड़ी माँ की मूर्ति निर्वस्त्र
धर्म के नाम पर
यह कैसी विद्रुपता।
बढ़ गई मन की व्यग्रता
माँ दुर्गा का यह कैसा सम्मान?
जिस प्रतिमा को पूजा
सम्मान दिया
माँ-माँ कहकर
पुत्र होने का भान दिया
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
का जाप किया
तुम्हीं आदि शक्ति
शक्ति स्वरूपा हो
मेरी जीवनदायिनी
कल्याणमयी माँ हो
फिर क्यों माँ को
किया निष्कासित
इतना अपमानित।
आदि शक्ति माँ का करते
जो निष्कासन और अपमान
भला वे कैसे कर पाएंगे
अपनी जननी का सम्मान।
कब तक चलेगा
यह पाखंड?
स्त्री शक्ति का उपहास
स्त्री अस्मिता का मानमर्दन
मूल्यों का हृास
आओ मिलकर करें यह संकल्प
अब नहीं करेंगे माँ का विसर्जन
उसे प्रति वर्ष संवारेंगे
नये रंगों से सजायेंगे
क्योकि माँ विसर्जन की नहीं,
है प्रेम प्रतिष्ठा की अक्षय निधि।