मूल कमल आसन ठनी हले मेर सुमेर।
बंक नाल खबरें भई भई नभ्र में टेर
सूरा धामा दै दयो बंक नाल चढ़ जाय।
गुरु को शबद आगे दये महलन पैठो धाय।
महल मंह सोभा बनी सोहंग ढुरत निहार।
अलख निरंजन विहेतिये सुकमुनि सेज समार।
गगन नगारे वज्जिया डंका भयौ अपार।
सुहंग पुण्ण जग मंह करो अलख पुरुष विस्तार।
ठाकुरदास जुग-जुग जियै बूरो जुगन को साल।
जूड़ीराम विचार कहि शब्द सनेही आद।