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मूसा अगर जो देखे तुझ नूर का तमाशा / वली दक्कनी

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मूसा अगर जो देखे तुझ नूर का तमाशा
उसकूँ पहाड़ हूवे फिर तूर का तमाशा

ऐ रश्‍क-ए-बाग़-ए-जन्‍नत तुझ पर नज़र किए सूँ
रि़ज्‍वाँ को होवे दोज़ख़ फिर हूर का तमाशा

रोज़-ए-सियाह उसके होंटों से जल्‍वागर है
तुझ ज़ुल्‍फ़ में जो देखा दैजूर का तमाशा

कसरत के फूलबन में जाते नहीं हैं आरिफ़
बस है मोहद्दाँ को मंसूर का तमाशा

है जिस सूँ यादगारी वो जल्‍वागर है दायम
तू चीं में देख जाकर फ़ग़फ़ूर का तमाशा

वो सर बुलंद आलम अज़ बस है मुझ नज़र में
ज्‍यूँ आसमां अयां है मुझ दूर का तमाशा

तुझ इश्‍क़ में वली के अंझो उबल चले हैं
ऐ बहर-ए-हुस्‍न आ देख उस पूर का तमाशा