मृगमरीचिका / दीपक जायसवाल
जन्म और मृत्यु के बीच
बहुत गहरी ऊबड़ खाबड़
सुंदर और ख़तरनाक
हरहराती हुई नदी बहती है
सबने अपने-अपने तिनके
सम्भाल रखे हैं जो किसी के
कहे अनुसार उन्हें
किसी अंधेरे में किसी नदी में
डूबने से बचा लेगा
पत्थर पर लिखे सारे नाम
हवा और बारिश इक दिन धुल देगी
सारे ग्रन्थ और उनके नियम
बढ़ियाई नदी को बाँध नहीं सकेंगे
जीवन सीमाओं में बंधी-खुदी
मापित नहर नहीं है
सारे तिनके मृगमरिचिका हैं
जो हमें कहीं नहीं ले जाते
कहीं नहीं ले जाते
पुल का दूसरा छोर
हमारी आँखे कभी
नहीं देख सकेंगी
नाव में जितने पत्थर होंगे
पतवार खिंचनी उतनी पीड़ादायक होगी
अंतत: यह भी है कि नदी
के दूसरे छोर पर किसी को कुछ भी
ले जाने की अनुमति नहीं होगी
अपनी आँखे-हाथ-पैर कुछ भी नहीं
सारे पत्थर डूबो दिए जाएँगे
जिन हृदयों में बने रहने के लिए
आपके सारे जतन किए
उनकी नावें आगे बढ़ निकलेंगी