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मृत्यु! भयानक आयी तुम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग तोड़ी-ताल कहरवा)

मृत्यु! भयानक आयी तुम, ले प्रियतम प्रभुका मधु संदेश॥
तोड़ सभी माया के बन्धन की मिथ्या ममता निःशेष॥
रहने कहीं न दिया तनिक भी मिथ्या अहंकार का लेश।
चला दिया तुरंत उस पथपर, जो जाता प्रियतम के देश॥
जन्म-मरण के क्लेश, भविष्य ‌के कर सभी नष्ट सविकार।
अमर बनाया, दिला दिया प्रभु-पद में नित निवास-‌अधिकार॥
मुक्तिदायिनी, प्रभु-पद-प्रेम-प्रदायिनि मृत्यु परम सुखरूप!
करो कृतार्थ मुझे तुम लेकर निज प्रभावमें अमल अनूप॥
स्वागत-‌अर्ध्य कृतज्ञ हृदयका करो कृपा करके स्वीकार।
करता मैं शुचि सुरभित मन-सुमनों से पूजन बारंबार॥
× × × ×
भूला मैं, पहचान न पाया मृत्यु-वेशमें तुमको, नाथ!
तुम्हीं रूप धर घोर मृत्युका, आये करने मुझे सनाथ॥
लीलामय-लीला विचित्र अति, को‌ई भी न पा सका पार।
तुम्हीं पिलाते स्वयं कृपा कर रूप-सुधा निज मधुर अपार॥
कर आवरण-भंग तुमने ही मायाका कर पर्दा छिन्न।
देकर मुझे गाढ़ आलिंगन, किया सदाके लिये अभिन्न॥