भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्युर्धावति पंचमः / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या डर ही
बसा हुआ है सब में-
डर ही से भागता है
पाँचवाँ सवार?
और उन डरे हुओं के डर से
भाग रहे हैं सब
मानते हुए अपने को अशरण,
बे-सहार :
क्या कोई नहीं है द्वार
इस भय के पार?
इससे क्या नहीं है निस्तार?
या कि वह भय ही है
एक द्वार
उस तक जो
सब को दौड़ाता है
निर्विकार?