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मृत्यु-3 / शुभाशीष चक्रवर्ती
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मेरे स्वप्न टुकड़ों में
नींद का सफ़र पूरा कर रहे हैं
मैं तुम्हारे पास अनजाने में चला आया हूँ
मेरे मृत होते जीवन पर
तुम हाथ रखती हो
आत्मा शरीर से
अलग हो जाती है
स्वप्न बदल जाता है
तुम मेरे घर की सीढ़ियों पर बैठी हो
तुम्हारी सफ़ेद साड़ी आलने में टँग रही है
उससे सफ़ेद रंग छूटकर फ़र्श पर फैल रहा है
आंगन में सफ़ेद धुँआ भर गया है
धुएँ से तुम्हारा शरीर टुकड़ों में बँट गया है
तुम दिखती हो
फिर
लुप्त हो जाती हो
मैं आँखें मूंद लौट आता हूँ
गाँव के किनारे पर खड़े बरगद के
एकमात्र झूले पर
मैं अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहा हूँ
शाम का धुंधलका उसकी डोर को
अंधेरे में ले जा रहा है
मैं मृत्यु और जीवन के बीच
डोल रहा हूँ
सारा गाँव सो रहा है