मृत्यु गीत / 3 / भील
दुख सागर भरिया दुख-सुख मन मा नि लावणा॥
राम सरीका रे राजा हुया, हारे जे घरे सतवन्ती नारी
आया रे रावण सीता लय गया
हाँ रे जिनका बुरा हया हाल, दुख-सुख मन मा नि लावणा।
हाँ रे हरिशचन्द्र सरीका रे राजा की, जे घर तारावन्ती नारी
आपना रे सत का कारणे, हाँ रे नीच घर भरियो पाणी।
दुख-सुख मन मा नि लावणा।
हाँ रे पाण्डव सरीका रे राजा वी।
हाँ रे जिन घर द्रोपती राणी
दुशासन चीर रे खेचिया, हरी पुरायो चीर
दुख-सुख मन मा नि लावणा।
संत कबीर की वीणती अरे सायब सुणलेणा
दास धना की विणती, हाँ रे रघुपति गुण गावणा।
दुख-सुख मन मा नि लावणा।
- किसी की मृत्यु होने पर गीत गाते हैं। संसार रूपी समुद्र दुःखांे से भरा है।
दुःख-सुख मन में नहीं लाना चाहिए। जो जीव पैदा हुआ है उसकी मृत्यु होनी
ही है, उसके लिए दुःख नहीं होना चाहिए। उदाहरण देकर समझाया है कि-
राजा राम जिनके यहाँ सती नारी थी, रावण आया और सीता को हरण कर ले
गया। रावण का कैसा बुरा हाल हुआ? तात्पर्य यह है कि मनुष्य को अच्छे कर्म
करना चाहिए, पाप नहीं करना चाहिए।
सतयुग में हरिश्चन्द्र राजा हुए, उनके यहाँ तारामती रानी थी। अपने सत्य के निर्वाह
में (सपने में ब्राह्मण को राज्य का दान कर दिया था) उन्हें राजपाट छोड़ना पड़ा और
दान के साथ दक्षिणा देने के लिए स्वयं की पत्नी बिक गए और मरघट की रखवाली
की। कितना दुःख झेला, किन्तु हिम्मत नहीं हारी। पुत्र की मृत्यु दुःख को जाना। इसलिए
मरने वाले के प्रति दुःखी नहीं होना चाहिए।
पाण्डव समान द्वापर में राजा हुए, उन पर कितना दुःख पड़ा था, राजपाट हार गए, खुद हारे
और पत्नी द्रोपदी को हार गए। दुःशासन द्रोपदी का चीर खींचने लगा था, उसे नग्न करना
चाहता था, किन्तु भगवान कृष्ण ने चीर को बढ़ाया और उसकी लज्जा रखी। दुःख संसार में
सभी पर पड़ता है उसको मन में नहीं लाना चाहिए।
संत कबीर विनती करते हैं कि सुनो! भगवान का राम नाम लेना चाहिए, जिससे मृतात्मा को
शान्ति प्राप्त होती है। गीत का मुख्य उद्देश्य परिवार वालों का ध्यान दुःख से दूर हटाना है।