भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्यु गीत / 6 / भील

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पाप धरम की गाठड़ी रे दयाराम, गाठड़ी काहाँ उतारां रे जी॥
गाठड़ी त ढोल्या नीचे उतारो रे, दयाराम भगवान लेखो मांगेगा॥
भगवान लेखो त तुम पछ लीजो रे, हम त भूखा चली आया॥
ताजा भोजन की थाली परसेली रे राम,
कोई के जिमाड्या होय त जीमो राम
निहिं ते भूख्या चली जाओ राम॥
भगवान लेखो मांगे राम॥
पाप धरम की गाठड़ी रे राम,
गाठड़ी काहाँ उतारां रे राम,
काठड़ी त ढोल्या हेट उतार दो राम,
भगवान लेखो मांगे राम॥
लेखो तो तुम पाछे लेजो, तीसा मरता आया जी॥
कोरा-कोरा मटका भरिया रे राम,
तुमने पिलाया होय तो पीवो जी।
नि तो तीस्या चली जावो राम॥
पाप धरम की गाठड़ी रे दयाराम,
गाठड़ी काहाँ उतारूँ॥
गाठड़ी तो ढोल्या हेट उतारो राम,
भगवान लेखो मांगे जी॥
लेखो तो तुम पाछे लेजोजी।
हम तो उघाड़ा आया जी॥
कोरा-कोरा कपड़ा गाठड़ा बंदिया पड़िया राम,
कोई के पेहराया होय त पेरो राम,
नहीं तो उघाड़ा चल्या जाओ राम॥
भगवान लेखो मांगे जी॥
पाप धरम की गाठड़ी रे दयाराम गाठड़ी काहाँ उतारूँ॥
गाठड़ी तो ढोल्या हेट उतारो राम,
भगवान लेखो मांगे जी॥
लेखो तो तुम पाछे लीजो
हम तो पायं बलता आया राम॥
नवी नवी मोजड़िया गाठड़ा मा बंधी
कोई के पेहराया होय त पेरो जी,
नहीं तो अलवाणा चल्या जाओ राम
भगवान लेखो मांगे जी॥

- मनुष्य इस देह को छोड़कर जब धर्मराज के यहाँ जाता है तो वहाँ क्या कहता
है? क्या उत्तर मिलता है? यह इस गीत में बताया गया है।

मनुष्य इस संसार में खूब धन अर्जित करता है, कोई मेहनत करके कमाता है और
कोई चोरी, भ्रष्टाचार, मिलावट से धन अर्जित करता है। कोई अपनी मेहनत की कमाई
से धर्म कार्य करता है, दान देता है। कोई दुनिया वालों पर प्रभाव डालने के लिए पाप
की कमाई को धार्मिक कार्यों में लगाकर अपने को आदर्श दानी कहलाता है, किन्तु इस
संसार से जब जाता है तो धन-दौलत, पुत्र-बहू आदि सभी यहीं रह जाते हैं, कोई भी
साथ में नहीं ले जा सकता। उसके साथ तो केवल पाप और धर्म की गठरी जाती है।
जिसने अपने परिश्रम की कमाई से जीवन-यापन करते हुए यथाशक्ति धरम किया है,
वही साथ जाता है। पाप की कमाई वाला पाप की गठरी ले जाता है। वहाँ जाकर विनय
करता है कि दयालु पाप-धरम की गठरी साथ में लाया हूँ इसे कहाँ उतारूँ? उसे
उत्तर मिलता है- दयाराम गठरी तो पलंग के नीचे रख दो, भगवान हिसाब माँगेंगे।
तुमने कितना धरम कियिा है औ कितना पाप किया है? मनुष्य वहाँ कहता है कि-
हिसाब तो आप बाद में लेना, मैं दुनिया से भूखा आया हूँ, मुझे भोजन चाहिए। उत्तर
मिलता है कि ताजे भोजन की थाली परोसी हुई है, तुमने अपनी मेहनत की कमाई
से किसी अपंग, अनाथ, गरीब, साधू ब्राह्मण को जिमाया हो तो जीम लो, नहीं तो
भूखे चले जाओ। अरे राम! भगावान तो हिसाब माँगते हैं, तुम्हें पात्रता आती हो तो जीमो।

आगे इसी प्रकार प्रश्न करके कहता है कि- मैं प्यास आया हूँ, मुझे पानी चाहिए। उत्तर
मिलता है कि किसी प्यासे को पानी पिलाया हो तो पी लो नहीं तो प्यासे जाओ। यहाँ
ठंडे पानी के मटके भरे हैं, तुम्हें पात्रता हो तो पी लो।

आगे जीव कहता है- मैं उघाड़ा आया हूँ वस्त्र चाहिए। उत्तर मिलता है कि यहाँ नये-नये
कपड़ों के गाठड़े बँधे हैं। तुमने किसी गरीब, असहाय को वस्त्र दान किया हो तो पहन लो,
नहीं तो उघाड़े चले जाओ। आगे कहता है कि मेरे पैर जलते हैं- मोजड़िया चाहिए। उत्तर
वही मिलता है कि तूने किसी को मोजड़िया पहनाई हो तो पहन लो, नहीं तो वैसे ही चले
जाओ। भगवान तो हिसाब माँगते हैं।

इस मृत्यु गीत का मुख्य उद्देश्य यह है कि दुनिया में अपने परिश्रम की कमाई से जीवन-यापन
करते हुए उसमें से बचे तो यथाशक्ति गरीब, अपंग, ब्राह्मण, साधु को दान देना चाहिए। इस
प्रकार दान की ओर प्रेरित किया गया है।