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मृत्यु से आत्मीय संवाद / तिथि दानी ढोबले

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मैं तुम्हारे लिए एक गर्भस्थ शिशु की तरह रही,
तुम मेरे लिए एक रहस्यों से भरा अचीन्हा विश्व
मेरे कानों पर गिरता रहा दुत्कार और चीत्कार का शोर
किसी ने तुम्हें अनबूझ पहेली बताया
किसी ने कोसा और जी भर कर दीं गालियां
अरे सुनो.... अभी मुंह फेर कर जाओ मत
इन बातों का रथ तुम्हारे पहियों पर ही चलता है
इसलिए, अपनी स्मृतियों की स्वेटर उधेड़ रही हूं
और अपनी स्मृतियां, तुम्हे सौग़ात में दे रही हूं
उस वक़्त कोई थपकियां दे कर सुला रहा था मुझे,
गर्म, मखमली, अदृश्य भारी कम्बल ओढ़ा रहा था मुझे
फिर अचानक...
मेरे धावक दिल ने पकड़ ली रफ़्तार,
कान सुनने लगे मधुमक्खियों का गुंजन
खोपड़ी हो गयी संतरे की दो फांक
अनुभूतियां बदलने लगीं करवट दर करवट
मेरा अंत मुझे क़रीब लगने ही लगा था
कि, तभी आया थिरकता हुआ रंगों का प्लाज़्मा
जो अभिज्ञ आकृतियों के जलीय बादलों में बदल गया
जिसके आर-पार दिखने लगीं सभी आकाशगंगाओं की चादरें
जिनमें समाते रहे रंगों की प्यालियों से छलकते- पिघलते रंग
मुझे लगा मैं एक रंग हूं उन्हीं के बीच का
इन बेहद ख़ूबसूरत लम्हों की मैं साक्षी थी
मैं फेंफड़ों का एक बड़ा गुब्बारा बनी बहुत ऊंची उड़ान पर थी
जिसने खींच ली थी अपने हिस्से की सारी प्राणवायु
और ग़ायब हो रहा था अभिज्ञता की दुनिया से
असंख्य तितलियां की अगुआई में गुरुत्वाकर्षण की सीमा को लांघना,
घास के हरे मैदानों के बीच बहती नदी के ऊपर से उड़ना,
फिर इस कायनात से अलग दुनिया के तारामयी आकाश में पहुंचना,
एक स्वर्गिक आनंद था।
जहां अकेलेपन का स्थानापन्न थी उमंगों की उत्साह भरी नीरवता
जो मेरे प्रफुल्लित अस्तित्व पर बेसाख़्ता दे रहीं थीं दस्तक
तभी मेरे मरहूम दोस्त ने मुझे लौट जाने को कहा और धक्का दे दिया
अब मैं अस्पताल के उसी बिस्तर पर हूं
जहां से शुरू हुई थी तुम तक पहुंचने की अविस्मरणीय यात्रा
अब फ़िजाओं में गूंज रही हैं मेरे लौटने की ख़ुशियां और मैं...
सिर्फ़ एक शाश्वत दर्द हूं।