भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्यु / ज्योति देशमुख / विलियम बटलर येट्स

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ना ही भय, ना ही होती है कोई आस
मरते हुए किसी पशु को
भयभीत और आशान्वित
आदमी करता है प्रतीक्षा अपने अन्त की

कितनी ही बार हुआ उसकी देह का अन्त
उठ खड़ा हुआ वह फिर कितनी ही बार

अपने गौरव में एक महान आदमी ने
किया सामना रक्तपिपासु लोगों का
उड़ाया उपहास श्वास के अधिक्रमण का;

वह वाकिफ़ है मृत्यु की रग-रग से
बनाया है मृत्यु को आदमी ने।

1929

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : ज्योति देशमुख

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
       William Buttler Yeats
                     Death

Nor dread nor hope attend
A dying animal;
A man awaits his end
Dreading and hoping all;

Many times he died,
Many times rose again,

A great man in his pride
Confronting murderous men
Casts derision upon
Supersession of breath;

He knows death to the bone –
Man has created death.

1929