भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मृत्यु / मुकेश कुमार सिन्हा
Kavita Kosh से
'मृत्यु'
मैं लिखूंगा एक नज्म तुम पर भी,
और
अगर न लिख पाया तो न सही
कोशिश तो होगी ही
तुम्हारे आगमन से
जीवन के अवसान में
शब्दों के पहचान की!!
तेज गति से चलता रुधिर
जब एकाएक होने लगे शिथिल
नब्जों में पसरने लगे
शान्ति का नवदीप
जैसे एक भभकता दीया
भक्क से बुझने से पहले
चुंधिया कर फैला दे
दुधिया प्रकाश!!
जर्द से चेहरे पर
एक दम से
दिखे, सुनहली लालिमा!
मौसम और समय के पहर से इतर
दूर से जैसे आती हो आवाज
एक मरियल से कुत्ते के कूकने की!!
समझ लेना विदा का वक्त
बस आ ही चुका है!
बेशक न कहें - गुडबाय!
पर नजरों में तो पढ़ ही सकते हो
- मृत्यु का एक प्रेम गीत!!
इतना तो कहोगे न -
"अब तक की बेहतरीन कविता"!!