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मृदु तुहिन से शीतकृत हैं
- हर्म्य, चंपक सुरभिमयशिर
योषिताएँ डालती उर
- पर कुसुम के हार मनहर
रक्त वर्ण कुसुम्भ से
- सुन्दर दुकूल नितम्ब पर हैं
और कुसुम राग के
- अंशुक स्तनों पर अति रुचिर है
विलासिनियाँ कान पर नव
- कर्णिकार लगा रही है
सघन नीले चल अलक में
- अब अशोक सजा रही है
मल्लिका नव फुल्ल, नूतन
- कान्ति देती है समुज्जवल!
प्रिये मधु आया सुकोमल