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मेंहदी / अविनाश मिश्र
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इस असर से तुम्हारी हथेलियाँ
कुछ भारी हो जाती थीं
इतनी भारी
कि तुम फिर और कुछ उठा नहीं सकती थीं
इस असर के सूखने तक
बहुत भारी था जीवन
समय बहुत निर्भर