मेघमाळ (4) / सुमेरसिंह शेखावत
धर-मंडण, खंडण दुख-दाळद, बिहंगा-गरभ-बिधान।
पिरवा रै पालणिये पाळिया, नीरद नीर-निधान।
जळ री नस्वर झांई।
छिणेक छतर-छांयां-छिण में छांई-मांई।।31।।
व्योम-पंथ गति-रथां विचरणो, मारूत-मंता मंडाण।
चमकै अठै, बठै चमचाळै,लोळै कठै लदाण।
बिरखा-पड़ै न बेरो।
घड़ेक लागै गेलै, घिर-फिर घालै घेरो।।32।।
आगै-आगै भाज्या आवै, हळवै भार हळूस।
पाछै मेघमाल री पंगत, जाणै जुटयो जळूस।
सरपट छावै सिखरां।
अै उलळै, बै उझळै-फेर बोझ रै फिकरां।।33।।
बरतै आज दुभांत ने बेरो-बादळियां किण बैर ?
ठाळा छाड थिरकती ठमकां-ठगै-ठगावै ठैर।
गळगच कर गहरावै ।
भरमै भोम भांकती, लूखी राख लजावै।।34।।
आगै-आगै उडै बधाऊ,बरसाळै रा दूत।
लारै मे’वै री मायड़ रा आवै मेघ सपूत।
बांटै बाळ बधाई
बीत्या जेठ-असाढ़,सावणी तीजां आई!।।35।।
थिरकै बाळ वारणा लेती, आभै उमड़ै लोर।
छतरी ताण किलंगीवाळा, बोलै मीठा मोर।
नाचै छातां चढ़-चढ़।
मुजरा कर-कर बरै, रंगीली रूत नैं बढ़-बढ़।।36।।
हवा न चालै, पान न हालै, ऊमसियो असमान।
हांफै हिया, जीव हळफळिया, आतप रै असमान।
उफणै इळा उबाळां।
सावण-सूर्यो सजळै-उतरांथूण उलाळां।।37।।
अणतिरपत मत राख इळा नैं, बिलख रही बणराय।
कर अब पूरो कोल कळायण, सावणियो सरसाय!
अध चौमासो आयो।
कात्यो हुवै कपास‘क, बिगड़ै खेल बणायो!।।38।।
सायर रो परदेसर सांकड़ो, दुरजण नेड़ो दूर।
परकत-धण दिन-रात पुकारै, कोल निभा न करूर!
होवै हेत-हंसाई।
रीझो धर-राधा-रा-कळ घण-स्याम कन्हाई!।।39।।
पीवरिये बाबल री पोळां-सावण मास सुरंग।
तिरिया हरखै तीज-तिंवारां-साथणियां रै संग।
नींतर भली नाबरै।
घूंघटियै में घूट-घूट-सुंदर मरै सासरै।।40।।
