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मेघमुक्ता / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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					मेघमुक्ता 
(विश्वास भाव का चित्रण) 
जिस आशा में निर्झर झरता, 
पीछे कभी न गिरता। 
जिस आशा से सघन बरसता 
मेघ धरा पर गिरता। 
जिस आशा से बीज धरा में 
छिप कर मिटता रहता। उसी मधुर आशा से मैं भी 
निज जीवन को सहता।
(मेघमुक्ता कविता का अंश)
 
	
	

