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मेघों का यह मण्डल अपार / रामकुमार वर्मा

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मेघों का यह मण्डल अपार
जिसमें पड़ कर तम एक बार ही
कर उठता है चीत्कार!!
ये काले काले भाग्य-अंक
नभ के जीवन में लिखे हाय!
यह अश्रु-बिन्दु-सी सरल बूँद भी
आज बनी है निराधार!!
यह पूर्व दिशा जो थी प्रकाश की--
जननी छविमय प्रभापूर्ण,
निज मृत शिशु पर रख नमित माथ
बिखराती घन-केशान्धकार!!

जीवन है साँसों का छोटे छोटे--
भागों में चिर विलाप,
अब भार-रूप हो रही मुझे
मेरी आँखों की अश्रु-धार॥
वर्षा है, नभ औ’, धरा बीच
मिलने का है क्या बँधा तार?
नभ में कैसा रोमांच हुआ
बिजली का विचलित वेष धार!!
सुख दुख के चरणों से विशाल
करता है सम्मुख नृत्य कौन?
मैं भूल रहा हूँ; मेघ आज
रो कर कैसे है निराकार!!