भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेघ आबेॅ फाटै लागलै / जटाधर दुबे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेघ आबेॅ फाटै लागलै
आकासोॅ केॅ साफ़ रहै केॅ
उमेद बढ़ी गेलै,
बेहिसाब पानी पड़ै के कारण
हतास होय रहलोॅ
किसानोॅ केॅ मोॅन हरसे लागलै
उपजा आबै बढ़िया होतै,
है आशा मनोॅ में आबी गेलै।

मेघोॅ केॅ दिन
रात अंधारोॅ से दुखी मोॅन
चैन केॅ आशा में हँसै लागलै,
दशहरा-दिवाली में
साफ मौसम रहै करोॅ
उमेद बढ़ी गेलै।
आसमानोॅ केॅ कारोॅ मेघोॅ जैसनोॅ
चिन्ता केरोॅ कारोॅ मेघ भी
फटै लागलै।
परब त्यौहार भी
उपद्रव आरो आतंक के भय से
मुक्त होतै
है मनें मानै लागलै।

हाय,
मगर भारतमाता के कटलोॅ अंश
बगले में छटपटाय रहलोॅ छै
भारतीय सनातन संस्कृति केॅ
ताल-तलैया आरो झरना केॅ
वहाँ जबरदस्ती
सुखैलोॅ जाय रहलोॅ छै।

यहाँ भी भारतमाता केॅ अकाशोॅ केॅ
कारोॅ-कारोॅ मेघें घेरले छै,
ई कारोॅ मेघ
कहिया फाटतै?
कहिया देशोॅ केॅ धरती आरोॅ आकाश
सुरजोॅ के तेजोॅ में फेरु चमके लागतै?
भारतीय संस्कृति पर चोट करै वाला
प्रदूषित बून्द सनी
ई संस्कृति केॅ तेज रोशनी से
कहिया प्रदूषण मुक्त होतै?

आजाद वाणी के नाम पर
देशी कौआ रोॅ टोली
अम्लीय शब्दोॅ केॅ बरसा करै वाली
झूठ आरोॅ जनविरोधी प्रगतिशीलता
के दलदल में फँसलोॅ,
कहिया बाहर निकली केॅ
भारतीय मिट्टी केॅ सनातन
सोन्होॅ सुगन्ध से ओतप्रोत होतै?

हे मेघ!
अपना केॅ
भारतीय संस्कृति केॅ अमृत सेॅ भरोॅ
आरोॅ भारतमाता के
कटलोॅ अंशोॅ पर

झमाझम बरसी केॅ
कटलोॅ अंशोॅ केॅ
फेनू जिन्दा करी दोॅ
आरोॅ देशी कौआ रोॅ टोली पर
झमाझम बरसी केॅ
ओकरोॅ मन आरोॅ तन सें
भारत केॅ दूषित करै वाला
जहर केॅ मिटाय दहोॅ।

ई जों नै होय छै
तेॅ तोंय झूठे रोॅ सरंगोॅ में
कथि लेॅ गरजै छोॅ
तोंय फाटोॅ
अहिनोॅ फाटोॅ
कि समतल करी दहोॅ
देश रोॅ सब कुरीती
अमीरी-गरीबी के भेद
शोषण पर जे फली-फूली रहलोॅ छै
हे मेघ!
ई तोरहै से होतै
आशा में हम्में, भारत के जन-जन
तोरा दिश ताकी रहलोॅ छियौं
मेघा फटतै
हमरा विश्वास छै।