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मेघ उतरे हैं धरा पर / रेनू द्विवेदी
Kavita Kosh से
बूँद की बारात लेकर,
बिजलियों का बैंड बाजा!
मेघ उतरे हैं धरा पर,
सृष्टि गाती गीत मंगल!
मनचली पागल घटाए,
गुदगुदाकर मन रिझातीं!
अनगिनत यह स्वप्न पलकों,
पर नए पल-पल सजातीं!
वाटिका की हर कली को,
छेड़ती है वायु चंचल!
मेघ उतरे---
प्रीत की चुनरी पहनकर,
प्रेम में ये ढल रही है!
भूमि प्रिय को पास पाकर,
बर्फ जैसी गल रही है!
सावनी बरसात से तो,
भीगता प्रतिपल हृदय तल
मेघ उतरे---
झील सागर और नदियों,
में पुनः आयी रवानी!
बारिशों का बूँद पीकर,
हो गयी वसुधा सयानी!
खेत जल से हैं लबालब,
खिल गए नद बीच शतदल!
मेघ उतरे---