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मेघ कहनेॅ जाय / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

सरंगोॅ मेॅ
अखाड़ के मेघोॅ के गोड़
पड़ले छेलै
कि बगुलो कै पाँत
चतुर्थी रोॅ चाँद रं आकाश में
मेघोॅ के स्वागत मेॅ
गीत गंुजाय देलकै
आरो धरती पर
गाछ-बिरिछ
पहाड़-पर्वत
नदी-पोखर
एक्के साथ उठाय लेलकै हाथ-
हे मेघ, आबोॅ पहिले हमरे ऐंगना!

मजकि की कहवोॅ
साल के, शिलन्ध्र के
जे मेघोॅ के नाम सुनथै
नया फूल आरो पत्ता सेॅ
भरेॅ लागलोॅ छै!
ई मेघ कन्नेॅ जाय?

बाँसवोॅन दिस
जेकरा में लाखो रोआं रं
नया-नया बाँस उगी ऐलोॅ छै
अखार के मेघ के प्रार्थना लेॅ
आकि जूही के दिश
जे ओकरोॅ आगुआनी में
सौंसे देह सुगंध सेॅ भरी लेलेॅ छै।