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मेघ की ज्यों / रेनू द्विवेदी
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मेघ की ज्यों धरा से मुलाकात है।
तृप्ति की हर तरफ सिर्फ़ बरसात है।
फूल भी खिल उठे मुस्कुराने लगे।
खग-विहग प्रेम के गीत गाने लगे।
खुशबुओं से नहाई हुई प्रात है।
तृप्ति की---
पंखुड़ी पर तो शबनम के मोती धरे।
हर कली पर भ्रमर राग गुंजन करे।
चाहतों की सजी एक बारात है।
तृप्ति की---
मोर के पाँव में कैसी थिरकन भरी।
हो मयूरी गयी प्रेम की रसभरी।
अनकही-सी लबों पर दबी बात है।
तृप्ति की---
पेड़ पौधे लगे मस्त हो झूमने।
मेघ पर्वत का मस्तक लगे चूमने।
सृष्टि भी ज्यों नहाकर हुई गात है।
तृप्ति की---
मेघ के बीच चपला चपल दामिनी।
नृत्य करने लगी यह धरा कामिनी।
ये तो' सावन की महकी हुई रात है।
तृप्ति की---