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मेघ गए और गए नाचते मयूर / केदारनाथ अग्रवाल
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मेघ गए और गए नाचते मयूर,
हंस गए दूर और गीत गए दूर ।
छन्द गए टूट और बन्धु गए छूट,
एक-एक टूट गए सूत्र भी अटूट ।
दैव हुआ क्रूर और काल हुआ क्रूर,
रंग उड़ा और उड़ा रूप का कपूर ।