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मेघ जैसा मनुष्य / शंख घोष / प्रयाग शुक्ल
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गुज़र जाता है सामने से मेरे वह मेघ जैसा मनुष्य
लगता है छू दें उसे तो झर पड़ेगा जल
गुज़र जाता है सामने से मेरे वह मेघ जैसा मनुष्य
लगता है जा बैठें पास में उसके तो छाया उतर आएगी
वह देगा या लेगा? आश्रय है वह एक, या चाहता आश्रय?
गुज़र जाता है सामने से मेरे वह मेघ जैसा मनुष्य
सम्भव है जाऊँ यदि पास में उसके किसी दिन तो
मैं भी बन जाऊँ एक मेघ।
मूल बंगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
(हिन्दी में प्रकाशित काव्य-संग्रह “मेघ जैसा मनुष्य" में संकलित)