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मेघ धरे चुम्बन ! / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
28
आनंददायी
तेरा प्रेम सदा ही
मैं जी रही हूँ
एक-एक पल में
प्रिय! सौ-सौ जीवन
29
उपकार है
तेरा मुझ पर यों
नीर-गगन
धरा पर बरसे
मेघ धरे चुम्बन
30
बूँद रहित
मैं श्वेत बदली- सी
तू काला मेघा
प्रिय ! तू अपेक्षित
और मैं उपेक्षित
31
न धरा अंक
नहीं सो सकी संग
माँ मजदूरन
ईंटें ढोती ही रही
वो ऊँचे बँगलों की
32
यह जीवन
बालश्रमिक- सा है
अबोध किन्तु
अथक जागता है
ढोता अभिलाषाएँ
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