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मेघ सेज पर थे छाए / कुमार रवींद्र
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कल सपने में
नदी-पार के जंगल आए
जंगल में थीं
हँसती फिरतीं वन-कन्याएँ
साँस-साँस में उनके थीं
ऋतु की कविताएँ
वन के भीतर
खुली चाँदनी के थे साए
वहीं रात-भर
इन्द्रधनुष ने रंग बिखेरा
तुमने भी कनखी से
हम पर जादू फेरा
हाँ, सजनी
कल मेघ सेज पर भी थे छाए
हम-तुम दोनों
नदी-किनारे घूमे जी-भर
बच्चे हमको दिखे
बनाते बालू के घर
हमने भी
आकाशकुसुम थे वहीं खिलाए