भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेज़ पर / वास्को पोपा / सोमदत्त
Kavita Kosh से
मेज़पोश तनता है
अनन्त तक
भुतही
छाया टूथपिक की पीछा करती है
गिलासों के ख़ूनाख़ून पदचिह्नों का
सूरज ढाँकता है हड्डियाँ
नए सुनहले गोश्त से
झुर्रीदार
अय्याश फ़तह करती है
गर्दन तोड़ टुकड़ों का
कल्ले उनींद के
फूट पड़े हैं सफ़ेद छाल के भीतर से
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त