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मेध मुक्ता (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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मेध मुक्ता (कविता का अंश)
 
मैं मर जाऊंगा पर मेरे जीवन का आनन्द नहीं,
झर जायेंगें कुसुम पत्र तरू, पर मधु प्राण बसन्त नही ं
सच है धन -तम में खो जाते, सोत सुनहले दिन के
पर प्राची से झरने वाली आशा का तो अंत नहीं
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जिस आशा से बीज धरा में छिप कर मिटता रहता।
(मेध मुक्ता कविता का अंश पृष्ठ 47)

)