भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेध मुक्ता (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
मेध मुक्ता (कविता का अंश)
मैं मर जाऊंगा पर मेरे जीवन का आनन्द नहीं,
झर जायेंगें कुसुम पत्र तरू, पर मधु प्राण बसन्त नही ं
सच है धन -तम में खो जाते, सोत सुनहले दिन के
पर प्राची से झरने वाली आशा का तो अंत नहीं
/////////////////
जिस आशा से बीज धरा में छिप कर मिटता रहता।
(मेध मुक्ता कविता का अंश पृष्ठ 47)