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मेनहोल में घुसा आदमी / नील कमल
Kavita Kosh से
चाहता तो मैं भी यही हूँ
कि मेनहोल में घुसा वह आदमी
साबुत बाहर निकले ।
वह आदमी जो जानता था
कि किसी की नाक पर बैठकर
उसका चेहरा पोंछना
कितना बचकाना लगता है
और यह कि मुट्ठी में आग
लेने से फफोले छलछला आते हैं ।
फिर भी उसने ऐसा ही कुछ
करना चाहा
यह जानते हुए भी
बाँस की फट्टी और लाल गमछा
जिनके साथ वह अंदर घुसा है
थक हारकर उसकी शव-यात्रा के
सामान बन सकते हैं
लेकिन किसी को तो पहले
घुसना था व्यवस्था के मेनहोल में ।
वह आदमी एक मुकम्मिल इंसान है
जो पत्थरों से टकरा कर सिर
एक लाल निशान छोड़ जाना चाहता है
जो कभी इंक़लाब का परचम बन लहराए ।
मैं चाहता हूँ, जब वह बाहर आए
तो सबसे पहले बढ़ कर
उसका परचम थाम लूँ ।