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मेरठ-1 / स्वप्निल श्रीवास्तव
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उत्तर से दक्षिण से
पूरब से पश्चिम से
रेल से बस से
जिधर से जाता था
पहुँचता था मेरठ
अब मेरठ पहुँचना आसान नहीं
क्योंकि वहाँ नहीं है मेरठ
जहाँ मेरठ को होना चाहिए
वहाँ गश्त लगाते सिपाही
टूटे हुए अधजले मकान
सन्नाटे में काँपती सड़कें
और भयभीत बच्चे हैं
जिन्हें स्कूल जाने के नाम से
लगता है डर
एक आग जल रही है वहाँ
ख़ून से लथपथ कई हाथ
उस आग पर अपनी रोटियाँ
सेंक रहे हैं