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मेरठ-2 / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
आसमान गिद्धों से भरा हुआ है
फूलों और बच्चों के बगीचे
रौंदे हुए हैं
थोड़ी दूर पर ठिठका हुआ
वसंत, हतप्रभ है
फूलों के लौटने में बहुत
दिन लग सकते हैं
बुलबुल का कारुणिक विलाप
सुनाई पड़ रहा है
सुनो हत्यारों
क्या तुम्हारी आत्मा तक
पहुँच रहा है यह रोदन