भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरठ-2 / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आसमान गिद्धों से भरा हुआ है

फूलों और बच्चों के बगीचे

रौंदे हुए हैं

थोड़ी दूर पर ठिठका हुआ

वसंत, हतप्रभ है

फूलों के लौटने में बहुत

दिन लग सकते हैं


बुलबुल का कारुणिक विलाप

सुनाई पड़ रहा है

सुनो हत्यारों

क्या तुम्हारी आत्मा तक

पहुँच रहा है यह रोदन