भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरठ-8 / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मैं मेरठ पहुँचना चाहता हूँ

बहुत दिन हुए नहीं गया मेरठ

जब मैं जाता हूँ वहाँ वे

रोक लेते हैं राह

हिकारत से कहते हैं

यह नहीं है तुम्हारा शहर

उनके शब्दों से रक्त की गंध

आती है

वे हत्यारे हैं

लेकिन मैं ज़रूर जाऊंगा मेरठ

मेरठ मेरा शहर है

जैसे यह देश है मेरा