मेरा अंतर सूखा समीर / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
मेरी आंखें प्रिय अश्रुहीन , मेरा अंतर सूखा समीर।
पी चुका हलाहल है जग का मेरा पीड़ित अंतर अधीर॥
तुम क्या जानो नयनों के जल
कैसे सूखे कब कब बरसे।
इस खारे पानी से सिंच कर
किस किस के जीवन वन सरसे।
मेरे मन में है शांति कहाँ मेरे नयनों में कहाँ नीर।
पी चुका हलाहल है जग का मेरा पीड़ित अंतर अधीर॥
जब कभी सजल होते हैं दृग
आँसू वह नहीं लहू उर का।
उन रक्त रंगे सपनों में है
खो गया कहीं स्वर नूपुर का।
मेरे नूपर में है उसाँस , मेरे उर का जलनिधि गंभीर।
पी चुका हलाहल है जग का मेरा पीड़ित अंतर अधीर॥
मेरी सतरंगी आशा का
है इंद्रधनुष अब डूब चुका।
मेरे मन का प्यासा पंछी
मरु धरा बीच अब ऊब चुका।
बिजली की लता चमक जाती घन का आहत उर चीर चीर।
पी चुका हलाहल है जग का मेरा पीड़ित अंतर अधीर॥
नैराश्य जगत यह जीवन का
इस वीराने में फूल कहाँ।
यह सूखी सरिता सैकत की
इसका अब उजड़ा कूल कहाँ।
मिट्टी मुट्ठी भर है यह तो रम गया यहीं गम का फकीर।
पी चुका हलाहल है जग का मेरा पीड़ित अंतर अधीर॥