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मेरा अंधकार / राजेन्द्र राजन
Kavita Kosh से
थोड़ी सी रोशनी जो मिली थी मुझे
शब्दों में बिखेर दिया मैंने उसे
मगर शब्दों से परे था मेरा अंधकार
मैं कैसे बताता कि कितना घना था मेरा अंधकार
जो कि मुझसे ही बना था
वह मेरे शब्दों से परे था
बहुत सी अंधेरी जगहों में मैं गया
पर खुद के अंधकार में
जाने की हिम्मत मौझमें नहीं थी
शायद यही था मेरा अंधकार
जो मेरे शब्दों से परे था
शब्दों से इतना परे
कुछ भी नहीं था मेरे लिए
जितना कि मेरा अंधकार ।