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मेरा आखिरी रंग भी ले जाओ / अजेय
Kavita Kosh से
हरियाली के साथ छीन ले गए
हज़ार रंग मेरे फूलों के
मेरी चाँदनी की हज़ार रातें
चुरा ले गए हो नीली नदियाँ
और बेशुमार तितलियाँ
भोर का सूरज गहरा केसरिया
आओ, अब राख ले जाओ बचा हुआ
मेरी जली हुई झोंपड़ी का
ले जाओ कोयले बीन बीन कर
और हड्डियाँ मेरे मवेशियों की
मिट्टी ले जाओ मेरी धरती की सारी
फिर भी कुछ कमी रह रह गई हो
तो आओ खींच ले जाओ
मेरी शिराएं और धमनियाँ
चूस लो मेरे खून का आखिरी क़तरा
मेरा क्या है
रह लूँगा जैसे तैसे
इस खोखली अँधेरी दुनिया में
तुम्हारा वह शहर सजना चाहिए
खिलता धड़कता
चहकता चमकता हुआ
एकदम ज़िन्दा लगना चाहिए
अगस्त 30, 2011