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मेरा आसमान / ऋचा दीपक कर्पे

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ना ऐसी हूँ ना वैसी हूँ
मैं बस खुद ही के जैसी हूँ...
है रूप अलग, पहचान अलग
मेरे जीने का अंदाज अलग
मैं क्यूँ तेरी छाया बनूँ
जब है मेरा विस्तृत वितान
मैं क्यों ओढूँ आकाश तेरा
जब है मेरा एक आसमान...

मैं क्यों मानूँ क्या है गलत
और क्या सही तू ही बता
गर मेरी है एक सोच अलग
तो इसमें क्या मेरी ख़ता?
मैं क्यों बाटूँ छोटा-सा घर
जब मेरा है अपना मकान
मैं क्यों ओढूँ आकाश तेरा
जब है मेरा एक आसमान...!

तू जहाँ कहे उस ओर मुडूँ
हैं पंख मेरे मैं क्यों न उडूँ?
सागर अलग कश्ती अलग
हस्ती अलग बस्ती अलग
मैं क्यों खो जाऊँ भीड़ में
मैं क्यों न भरूँ ऊँची उड़ान?
मैं क्यों ओढूँ आकाश तेरा
जब है मेरा एक आसमान...!

परिधी मेरी मत सीमित कर
मुझमें मिल मुझे असीमित कर
हो एक मंजिल हो एक डगर
तू बन जा मेरा हमसफर
क्यों मैं तेरे पीछे चलूँ
जब हूँ मैं तेरे ही समान
मैं क्यों ओढूँ आकाश तेरा
जब है मेरा एक आसमान...!

तू भी आ चल मेरे संग संग
रंग जा तू भी मेरे रंग रंग
हम साथ बहें हम उड़ें साथ
दे दे मेरे हाथों में हाथ
मेरी दुनिया को मत बदल
बस बन जा तू मेरा जहान
मैं ओढूँगी आकाश तेरा
गर ओढे तू मेरा आसमान...!