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मेरा ईमान सोया है जगा दो / देवी नांगरानी

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मेरा ईमान सोया है जगा दो
उसूलों से उसे फिर से मिला दो

जहाँ पल कर हुआ है झूठ कुंदन
उसी आतिश में सच को भी जला दो

कोई झोंके जो धूल आँखों में सच की
मुझे तुम उसके चंगुल से छुड़ा दो

किया रुस्वा मेरी मजबूरियों को
कभी पहचान शोहरत से करा दो

धरम-मज़हब को क्यों हो दोष देते
न क्यूं बलि नफरतों की ही चढ़ा दो

न ‘देवी’ हो दया की भावना जब
तो रुख़ से झूठ का पर्दा उठा दो