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मेरा कच्चा घट / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
मेरा कच्चा घट रीता ही रहने क्यों न दिया, पनिहारिन!
आँवें में जो पका नहीं था, उसको तुमने पात्र बनाया,
कच्चा धागा डोर बनाकर घट को बाँधा और डुबाया
ऐसे दुस्तर नील सलिल में, किसकी कोई थाह नहीं है;
जिसके लोने लहर-भँवर से छुटकारे की राह नहीं है;
ऐसे में कैसे बच पाता, कोरी माटी का यह बरतन;
नीर-निकष पर कसकर इसका कैसा हाल किया, पनिहारिन!