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मेरा क़लम मेरे जज़्बात माँगने / ज़फ़र गोरखपुरी
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मेरा क़लम मेरे जज़्बात माँगने वाले
मुझे न माँग मेरा हाथ माँगने वाले
ये लोग कैसे अचानक अमीर बन बैठे
ये सब थे भीक मेरे साथ माँगने वाले
तमाम गाँव तेरे भोलपन पे हँसता है
धुएँ के अब्र से बरसात माँगने वाले
नहीं है सहल उसे काट लेना आँखों में
कुछ और माँग मेरी रात माँगने वाले
कभी बसंत में प्यासी जड़ों की चीख़ भी सुन
लुटे शजर से हरे पात माँगने वाले
तू अपने दश्त में प्यासा मरे तो बेहतर है
समंदरों से इनायात माँगने वाले