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मेरा कितना पागलपन था / गोपालदास "नीरज"

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मेरा कितना पागलपन था!

मादक मधु-मदिरा के प्याले
जाने कितने ही पी डाले
पर ठुकराया उस प्याले को, जिससे था मधु पीना सीखा।
मेरा कितना पागलपन था!

जिस जल का पार नहीं पाया
मँझधार मुझे उसका भाया
फ़िर उसके रौरव में अपने प्राणों का रव खोना सीखा।
मेरा कितना पागलपन था!

जो मेरे प्राणों में निशदिन मीठी मादकता भरता है
दुख पर चिर-सुख की छाया कर प्राणों की पीड़ा हरता है
उस मन के ठाकुर को ठुकरा पत्थर के पग पड़ना सीखा।
मेरा कितना पागलपन था!