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मेरा कुछ नहीं / विवेक निराला

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मेरे हाथ मेरे नहीं
उन पर नियोक्ता
का अधिकार है ।

मेरे पाँव मेरे नहीं
उन पर सफ़र लिखा है
जैसे सड़क किनारे का वह पत्थर
भरवारी — 40 किमी ।

तब तो मेरा हृदय भी मेरा नहीं ।

फिर तो कुछ भी नहीं मेरा
मेरा कुछ भी नहीं
वह ललाट भी नहीं
जिस पर गुलामी लिखा है
और प्रतिलिपि से
नत्थी है मेरी आत्मा ।