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मेरा कोई शत्रु नहीं, कोई मित्र नहीं / विजय 'अरुण'

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मेरा कोई शत्रु नहीं, कोई मित्र नहीं
दुनिया वालों क्या यह बात विचित्र नहीं!

चित्रकार! यह चित्र है तो मुँह से बोले
आड़ी सीधी रेखाएँ तो चित्र नहीं।

यह अनमोल पसीना प्यार के पथ का है
यह बाज़ार में बिकने वाला इत्र नहीं।

आए मेनका और डिगाए अब मुझ को
मैं वह पहला-सा अब विश्वामित्र नहीं।

दीन हूँ फिर भी दीन दुखी मैं नहीं 'अरुण'
हीन हूँ फिर भी मेरा हीन चरित्र नहीं।