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मेरा गाँव / सतीश छींपा

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दिन ऊगने के साथ ही
जीवन दौड़ने लगता है यहाँ
टीबों के बीच से निकलती पगडण्डी पर
ऊँट गाड़ा ले
निकल पडते है किसान खेतों के लिए
गाडे पर बंतल करती औरते
डोका चूसते बच्चे
हँसी-ठिठोली
चुगली-चपटी
गाना-गुनगुनाना
चिंताए
कळी का सुट्टा
उड़ता धुंआ
खून के साथ बहता है जीवन
ट्यूबेल पर टेर लगाते
हाळी की आँखों में
बोरड़ी के भाटा मारते बच्चों की शरारत में
लड़कियों के गुलाबी होंटो पर
फिसल जाता है जीवन
गिनाणी में ठीकरी तिराते बच्चे
सूदखोरों को जवाब देते
हिम्मती किसान
आधी रात
खेतों में छिप
प्रेम करते जोड़े
हाळी का भाता लाती धिराणी की चाल में
उलझ-उलझ जाता है जीवन
पंचायत के बजट में हेर-फेर
सरपंच की हवेली
हवेली की छाँव में झोंपड़ी
ठण्ड़ा चूल्हा
पिचके पेट
सिल्ला चुगते बच्चों के लीरमलीर कपड़ों में
उड़-उड़ जाता है जीवन
नीम पर झूला-झूलती नवयोवनाएँ
शोषण के विरूद्ध लामबद्ध युवा
दुनिया जीतने का जज्बा
रखता है मेरा गाँव