भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा घर (दो कविताएँ) / हावियर हिरॉद / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(एक)

एक सेब की तरह है
मेरा घर,
अपनी किताबों और खोल के साथ
और आख़िरी रातों में
अपने आरामदेह बिस्तर के साथ।

मेरा कमरा
इन सभी चीज़ों से मिलकर बना है
कहना चाहिए
कि कमरे में जलने वाला लैम्प
मुझे हँसना सिखाता है
अपने पेरुआई कवि
सेजर वालेहो के बाद
वह नेरूदा के सम्पूर्ण प्रकाश से
मुझे परिचित कराता है

आखिरी में है मेरा कमरा
एक सेब की तरह
अपनी किताबों,
अपने काग़ज़ों,
अपने दिल
और मेरे साथ।

(दो)

मेरे घर की खिड़कियों के रास्ते
मुझ तक पहुँचने वाला सूरज
मेरे चेहरे को
मेरे हाथों को
प्रकाशित करता है
और ख़ुशी से चीख़ता है
अपने स्वच्छ प्रकाश के साथ

मृत रातों के समय
मैं आँखें खोलता हूँ
इस सहज आशा के साथ
कि मैं ज़िन्दा रहूँगा
एक और दिन

अनन्त प्रकाश तक
पहुँचने से पहले
एक और दिन
मैं खोल सकूँगा
अपनी आँखें।

मूल स्पानी से अनुवाद : अनिल जनविजय