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मेरा जनाजा / नाज़िम हिक़मत / सुरेश सलिल

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मेरा जनाजा क्या मेरे अहाते से उठेगा ?
तीसरी मंज़िल से मुझे नीचे कैसे उतारोगे भला ?
ताबूत लिफ़्ट में आएगा नहीं
और सीढ़ियाँ बेहद संकरी हैं ।

हो सकता है अहाते में घुटनों घुटनों धूप हो,
और कबूतर
हो सकता है बच्चों के शोरगुल से भरपूर बर्फ़ हो
हो सकता है बारिश हो रही हो
तारकोल को तर करती हुई

और हरदम की तरह कूड़ेदान रखें होंगे अहाते में
अगर, जैसा यहाँ का रिवाज है,
खुले मुंँह मुझे लिटाया गया टृक में
मेरे माथे पर कबूतर कुछ टपका सकता है :
ख़ुशक़िस्मती मेरी

बैण्ड बजे न बजे,
बच्चे मेरे क़रीब आएँगे ही
मुर्दों को लेकर बड़ा कुतूहल होता है उनमें
हमारी रसोई की खिड़की मुझे जाते हुए निहारेगी
अलगनी पर धुले हुए कपड़ों वाला हमारा बारजा मुझे अलविदा कहेगा

उस अहाते में मैं कितना ख़ुश था
तुम कभी नहीं जान पाओगे
पड़ोसियो,
मेरी दिली ख़्वाहिश है कि तुम सब
लम्बी ज़िन्दगी जियो ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल