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मेरा जन्म-दिवस / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
कहीं नहीं कुछ भी बदला-सा, सब कुछ वही पुराना
गीली मिट्टी में भारी पत्थर का धसना जारी
ग्राहदन्त के बीच हस्ति की लगातार लाचारी
खड़ी फसल पर पालांे का, बादल का आना-जाना ।
पूस-माघ की आपा-धापी, ठूंठ ठिठुरता कपकप
बुझी हुई बोरसी की आगिन, गर्म राख कुछ बाकी
अच्छे दिन की सुखद कल्पना, बची हुई अबला की
सूखी सरिता पर मटमैले पंखों का है छपछप ।
लेकिन घर में धूम मची है, जन्म-दिवस है मेरा
चन्दन-टीका, उपहारों पर हँसी मिठाई की है
जहाँ तेल से काम चलेगा, वहाँ कड़कता घी है
जन्म-दिवस पर मंगल-मंगल के स्वर का है फेरा ।
सन्नाटे में गीत-नाद का चलता रहे सफर यह
धरती पर लघु जीवन क्या है ? चैत-शिशिर का घर यह ।